Sunday, October 7, 2012

सफलता के लिए प्राथमिकताएं तय कीजिए और एक समय में एक ही लक्ष्य रखिए


 आप हमेशा इस बात के लिए परेशान रहते हैं कि आप कड़ी मेहनत के बाद भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में चूक जाते हैं। इसकी वजह जानना चाहते हैं तो ये आठ नियम अपनाइए और उन पर अमल करने की कोशिश कीजिए।
1.अपने लक्ष्य की सूची बनाइए व लिखिए। 
2. समझने की कोशिश कीजिए कि आप अपने से क्या और कैसे चाहती हैं। 
3. अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए जो कारगर उपाय हैं उनकी भी सूची बनाइए। 
4.कुछ सामान्य नकारात्मक चीजों को अपने से दूर कर दीजिए ताकि आपकी राह आसान हो सके जैसे यह कहना कि डाइट बहुत अधिक सहायक नहीं होती वजन नियंत्रण में। 
5.प्राथमिकताएं तय कीजिए और उन्हें समय सीमा में बांधिए। 
6.अपने से पूछिए कि लक्ष्य पाने के बाद आप अपने को क्या ईनाम देंगी। 
7.अपने दिमाग में एक पिक्चर तैयार कीजिए कि जब आप अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेंगी तो कैसा महसूस करेंगी। 
8.एक समय में एक ही लक्ष्य रखिए, होता यह है कि एकसाथ कई काम लेकर चलने से ही सफलता दूर हो जाती है।  
 यह कहना कि मेरे पास एक्सरसाइज के लिए समय नहीं है। यह एक आम बहाना है। समय को कैसे बचाया जा सकता है इसके लिए सप्ताह भर की डायरी लिखिए। उसमें सारे विवरण होने चाहिए जो भी आपने किया। बिस्तर से पैर नीचे रखने से लेकर रात में सोने तक की सभी बातें। सारे विवरण सामने होने पर ही आप देख पाएंगी कि समय कहां बच सकता है। दोपहर के खाने के बाद एक जगह टिक कर बैठने के स्थान पर टहलते हुए चाय पीने जाइए। यदि आप बच्चों को छोडऩे स्कूल जा रही हैं तो जिम होते हुए आइए। अपने आप से वादा कीजिए कि आप सच में अपने लक्ष्य को पाना चाहती हैं तभी परिणाम बेहतर होंगे।
साभार वागीशा  

भारतीय महिलाओं में दिल का दौरा पडऩे का खतरा ज्यादा होता है Heart Attack


लोगों के बीच एक बड़ा मिथक प्रचलित है कि दिल की बीमारियों के शिकार सिर्फ पुरुष ही होते हैं। पिछले कुछ साल से महिलाओं में दिल की बीमारियों के मामले जिस तेजी से बढ़े हैं, उससे यह मिथक पूरी तरह टूट गया है।
पिछले कुछ अध्ययनों के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में हर साल दिल की बीमारियों से 86 लाख महिलाओं की मौत हो जाती है। यह संख्या महिलाओं की कुल मौत का एक तिहाई हिस्सा है। सिर्फ दिल के दौरे से ही दुनिया भर में 2,67,000 महिलाओं की मौत हो जाती है और यह तादाद स्तन कैंसर से मरने वाली महिलाओं की संख्या से छह गुना ज्यादा है। भारत में महिलाओं में हृदय संबंधी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। देश में महिलाओं की मौत में इन बीमारियों की हिस्सेदारी 17 फीसदी तक पहुंच गई है।
तेजी से बदलती जीवनशैली, पश्चिमी शैली का खान-पान, दफ्तर और घर में बढ़ते तनाव स्तर महिलाएं दिल की बीमारियों का ज्यादा शिकार हो रही हैं।
हाई ब्लडप्रेश, हाई कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज, मेनोपॉज, मेटाबोलिक सिंड्रोम महिलाओं में इस बीमारी को बढ़ावा देते हैं। शारीरिक मेहनत से दूर जीवनशैली, गर्भनिरोधक दवाओं के  इस्तेमाल और एस्ट्रोजन लेवल का कम होना भी महिलाओं में दिल की बीमारियों को न्योता देता है। स्मोकिंग और ड्रिकिंग महिलाओं में दिल की बीमारियों की बड़ी वजह हैं।
जो महिलाएं स्मोकिंग करती हैं, उनमें पुरुषों की तुलना में दिल की दौरा पडऩे की आशंका 19 गुना ज्यादा होती है। हाईब्लडप्रेशर या हाइपरटेंशन की शिकार महिलाओं को पुरुषों की तुलना में दिल का मरीज होने की आशंका 3.5 गुना ज्यादा होती है। जो महिलाएं गर्भनिरोधक गोलियां लेती हैं उनमें यह खतरा ज्यादा होती है। खास कर उन महिलाओं में जिनका वजन ज्यादा होता है।
दिल की बीमरियों के लक्षण पुरुषों और महिलाओं में एक जैसे नहीं होते। जैसा कि पुरुषों में होता है, महिलाओं में दिल का दौरा पडऩे से पहले छाती में बहुत ज्यादा दर्द नहीं होता और न ही उनके बाएं हाथ में यह शिकायत होती है। महिलाओं में थकावट और कमजोरी, सांस लेने में तकलीफ, उल्टी या चक्कर आना, चिंता, सिर घूमने और नींद में गड़बड़ी जैसी शिकायतें दिल के दौरे का पूर्व संकेत हो सकती हैं।
अपच, दर्द, जबड़े, गर्दन, बांह या कान तक पहुंचने वाली जकडऩ इसके लक्षण हो सकती है। लगातार रहने वाला सिरदर्द भी एक लक्षण हो सकता है।
30 से 40 साल की महिलाओं में अचानक  दिल का दौरा पडऩे का खतरा ज्यादा होता है क्योंकि इस उम्र में महिलाएं में गर्भ निरोधक गोलियों के सेवन करती हैं। मोटापा, हाई कोलेस्ट्रॉ़ल और मीनोपॉज का एक साथ होना मारक होता है। चूंकि महिलाएं मासिक धर्म, गर्भधारण और प्रसूति से जुड़े दर्द को सहने की आदत विकसित कर लेती हैं। इसलिए वह शरीर में होने वाले दर्द को हल्के में लेने लगती हैं। यह स्थिति खतरनाक है। कई मामलों में यह दिल के दौरे का संकेत देते हैं। 65 साल से ज्यादा उम्र वाली महिलाओं में दिल का दौरा पडऩे का खतरा ज्यादा होता है और हो सकता है कि उनमें इसके लक्षण भी न दिखाई देते हों। जिन महिलाओं में मीनोपॉज हो चुका होता है उन्हें भी हृदय संबंधी बीमारियां होने का खतरा सामान्य महिलाओं से दो या तीन गुना ज्यादा होता है।
शुरुआती दौर में दिल की बीमारियां दवाओं से ठीक हो जाती हैं लेकिन एडवांस स्टेज में सर्जरी की मदद लेनी पड़ती है। बीमारी के एडवांस स्टेज से ग्रसित महिलाओं के दिल की बाइपास सर्जरी या एंजियोप्लास्टी करनी पड़ती है। उन्हें आर्टिफिशियल हार्ट वाल्व या पेसमेकर लगाना पड़ सकता है। भारतीय महिलाओं की हृदय धमनियां पुरुषों की तुलना में संकरी होती है। इसलिए महिलाओं में दिल का दौरा पडऩे का खतरा ज्यादा होता है।
बहरहाल, कुछ सरल उपायों से हृदय संबंधी बीमारियों की रोकथाम में मदद मिल सकती है। अगर महिलाएं स्मोकिंग करती हैं तो इसे तुरंत बंद कर देना चाहिए। इसमें निकोटिन होता है यह दिल के लिए बहुत नुकसानदेह होती है। खान-पान का ध्यान रखकर दिल की बीमारियों से निजात पाई जा है। तले-भूने खाने में मौजूद ट्रांस फैट एसिड शरीर में बुरे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ा देता और अच्छे कोलेस्ट्रॉल को घटा देता है। इससे दिल पर बुरा असर पड़ता है। नियमित व्यायाम से दिल को स्वस्थ रखा जा सकता है। हर दिन सुबह-शाम आधे घंटे का नियमित व्यायाम हृदय संबंधी बीमारियों को दूर रख सकता है। योग और ध्यान जैसी शारीरिक-मानसिक क्रियाएं इन्हें दूर रखती हैं। भारत में हर साल हृदय धमनी संबंधी बीमरियों से 25 से 30 लाख लोगों की मौत हो जाती है और इनमें महिलाओं की तादाद बढ़ती जा रही है। इसलिए समय रहते इन बीमारियों से बचने और इनके बारे में जागरुकता फैलाने के कदम उठाए जाने चाहिए।
http://www.aparajita.org/read_more.php?id=895&position=1&day=1

Tuesday, September 18, 2012

औरत की काया को ताउम्र सुंदर, सुडौल व स्वस्थ बनाए रखने के लिये सुंदर आयुर्वेदिक नुस्खा Sudol


मातृशक्ति के शरीर को ताउम्र सुंदर, सुडौल व स्वस्थ बनाए रखने के लिये सुंदर आयुर्वेदिक नुस्खा :-
महिलाएँ प्रायः स्वभाव से ही भावुक होती हैं. ममता, प्यार, दया और सेवाभाव, ये सभी गुण उनमें जन्म से ही होते हैं. यही वे गुण हैं जिनके कारण 'मातृशक्ति' शादी के बंधन में बंधने के बाद पराए घर को भी अपनाकर स्वयं को दिन-रात उस परिवार की सेवा में लगा देती है. ऐसे में अधिकतर महिलाएँ अपने ऊपर ध्यान नहीं दे पाती हैं. ध्यान नहीं देने के कारण वे कई बार अपनी बीमारियों को छिपाए रखती हैं. इस तरह अंदर ही अंदर वे कमजोर होती जाती हैं. श्वेत-प्रदर, रक्त प्रदर, मासिक धर्म की अनियमितता, कमजोरी, सिरदर्द, कमरदर्द आदि ये सभी बीमारियाँ शरीर को स्वस्थ और सुडौल नहीं रहने देती हैं.
इसलिए हम आपको ''स्वर्ण मालिनी'' वसंत नामक एक ऐसा आयुर्वेदिक नुस्खा बताने जा रहे हैं जो महिलाओं की हर तरह की कमजोरी को दूर करता है.
(अ) ''स्वर्ण मालिनी'' वसंत बनाने हेतु आवश्यक आयुर्वेदिक सामग्री :- 
१/ स्वर्ण भस्म या वर्क = 10 ग्राम
२/ मोती पिष्टी = 20 ग्राम
३/ शुद्ध हिंगुल = 30 ग्राम
४/ सफेद मिर्च = 40 ग्राम
५/ शुद्ध खर्पर = 80 ग्राम
६/ गाय के दूध का मक्खन = 25 ग्राम
7/ थोड़ा सा नींबू का रस.

(ब) बनाने की विधि :- 
पहले स्वर्ण भस्म या वर्क और हिंगुल को मिला कर एक जान कर लें. फिर शेष द्रव्य मिलाकर मक्खन के साथ अच्छी तरह घुटाई करें. अब नींबू का रस कपड़े की चार तह करके छान कर इसमें मिलायें. अब इसकी आठ-दस दिन तक नियमित रूप से इतनी घुटायी करें कि इसका चिकनापन पूरी तरह दूर हो जावे. अब इसकी एक-एक रत्ती की गोलियाँ बना लें.
(स) सेवन की विधि :- 
1 या 2 गोली सुबह शाम एक चम्मच च्यवनप्राश के साथ सेवन करें.
(द) ''स्वर्ण मालिनी'' वसंत के लाभ एवं उपलब्धता :-
इस दवाई का सेवन करने से महिलाओं को प्रदर रोग, शारीरिक क्षीणता व हर प्रकार की कमजोरी से मुक्ति मिलती है और शरीर स्वस्थ और सुडौल बनता है. इसके सेवन से शरीर के सभी अंगों को ताकत मिलती है व शरीर बलशाली बनता है. यह दवाई ''स्वर्ण मालिनी'' वसंत के नाम से ही बाजार में भी मिलती है.
फ़ेसबुक से साभार

Saturday, September 15, 2012

ऐसे बनाएं खुद को मजबूत

यदि आप अक्सर शंकाओं में घिरी रहती हैं, कोई भी निर्णय लेने से हिचकिचाती हैं या फिर खुद पर भी भरोसा नहीं कर पाने के कारण कोई नई पहल नहीं कर पातीं, तो इसका मतलब है आपको खुद को मजबूत बनाने की जरूरत है। कैसे? आइये जानें..
आप होम मेकर हैं या फिर नौकरी पेशा महिला, चुनौतियों से दो-चार होना ही पड़ता है। कई पल ऐसे भी आते हैं, जब खुद से ही विश्वास डगमगाने लगता है। ऐसे में जरूरत होती है कुछ ऐसे बदलावों की, जो आपको भीतर तक मजबूत बनाएं, साथ ही आपको अलग पहचान दिलाने में भी मदद करें।  
1. खुद पर करें विश्वास: कैसी भी स्थिति क्यों न हो, यह विश्वास बनाए रखें कि आप इसका सामना कर सकती हैं। हमेशा ध्यान रखें कि आप  खुद के बारे में जितना सोचती हैं, उससे कहीं अधिक काम करने में सक्षम हैं।   
2. प्रश्न पूछें: पहले से यदि कुछ होता रहा है तो यह जरूरी नहीं कि वह सही भी हो या फिर आपके लिए भी उसकी उतनी ही उपयोगिता हो। सच्चाई तो यह है कि हमारी अधिकतर सीमाएं खुद की बनाई होती हैं। पहले से अपने मन में धारणाएं बनाकर रखना संभावनाओं को खत्म कर देता है। 
3. करें वही, जो हो सही: किसी भी चीज या अच्छाई-बुराई से बड़ी बात यह है कि आप खुद के प्रति ईमानदार रहें। फिर भले ही यह रास्ता मुश्किल ही क्यों न हो। हो सकता है कि कुछ बातें आपकी लोगों को बुरी लग सकती हैं, पर यदि आप सही हैं तो पूरा परिवार या सहकर्मी जल्द ही आपकी बात को स्वीकार करने लगेंगे।
4. नहीं कहना भी सीखें: हर बात के साथ सहमति जताने का एक मतलब है खुद को सीमित करना। कई बार सर्वश्रेष्ठ तक पहुंचने के लिए दूसरे अच्छे विकल्पों को भी ना कहना पड़ता है। घर-परिवार या कार्यस्थल पर काम करते हुए आपको अपनी प्राथमिकताएं हमेशा ध्यान रखनी चाहिए। ऐसे में यदि कोई बात ऐसी है, जो आपको पूरी तरह नामंजूर है या आपकी क्षमता से बाहर है, तो उसे अवश्य बताएं। अन्यथा हर चीज से तालमेल बना लेने के आपके स्वभाव का फायदा उठाने में लोगों को देर नहीं लगेगी। 
5. शिकायत करना बंद करें: आप अपनी समस्याओं से तब तक बाहर नहीं निकलेगी,जब तक आप उनके बारे में शिकायत करती रहेंगी। आप क्या चाहती हैं, इस पर अपनी ऊर्जा लगाएं, बजाय इसके कि आप क्या नहीं चाहतीं। इसी तरह आप क्या कर सकती हैं, इस पर ध्यान दें, यह नहीं कि आप क्या नहीं कर सकतीं। 
6. बड़ा सोचें: यदि आप ज्यादा बेहतर कर सकती हैं तो कम से समझौता क्यों करें। अपनी दूरदृष्टि को व्यापक बनाएं। ध्यान रखें कि यदि आप सोच सकती हैं तो आप उस काम को कर भी सकती हैं। सभी बड़े काम पहले मन से शुरू होते हैं। कभी-कभार अपने प्रियों की भी छोटी-छोटी बातें चुभ जाती हैं, पर उस समय तस्वीर के बड़े पक्ष को देखें। 
7. अनुकूलता से बाहर निकलें: अपने जीवन को दूसरों की राय के आधार पर न चलाएं। सुविधाओं से बाहर निकलने का साहस दिखाएं। आप क्या सोचती हैं, उसको अभिव्यक्त जरूर करें। तभी जो सोचती हैं, वह कर सकेंगी। 
8. आवाज उठाएं: जितना आप सहती हैं, उतना ही आपको सहने के लिए मजबूर किया जाता है। यदि ऐसा कुछ है, जो आप सच में कहना या करना चाहती हैं, तो अवश्य उन्हें बताएं, जो आपको समझते हैं। अपनी बात रखने से पीछे न हटें। निर्भय होकर अपनी बात कहना सीखें। 
9. खुद से हार न मानें: जितने मजबूत आपके इरादे होंगे, उतनी ही सफलता आपको मिलेगी। मुश्किल स्थितियां आपकी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं। जितना अधिक चुनौतियों का सामना करेंगी, उतना ही सबके सामने खुद को मजबूती से रख सकेंगी। ऐसे में शुरुआती संघर्षो से घबराएं नहीं। 
10. कदम उठाएं: जीवन में सफलता उसी को मिलती है, जो अपने तमाम डर और शंकाओं के बावजूद कदम उठाते हैं और विपरीत परिस्थितियों में निर्णय ले पाते हैं। जोखिम के बिना कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता। अपने डर से आगे निकलने की कोशिश करें।
साभार हिंदुस्तान 15-09-2012
http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/lifestylenews/article1-Personality-development-50-50-262339.html

Tuesday, September 4, 2012

आधुनिकता के साये में कामकाजी पति-पत्नी

'दृश्य और अदृश्य जगत' ब्लॉग पर 
गीता झा

आधुनिकता के साये में उबाऊ दाम्पत्य जीवन

दांपत्य या गृहस्थ  -जीवन एक महत्पूर्ण संस्था है जिसमें नर-नारी के निर्मल सामीप्य का समर्थन होता है. कुछ एक अपवाद , विवशता या अति उच्च - स्तरीय आदर्शवादिता के तथ्यों को छोड़ दिया जाये तो दाम्पत्य जीवन सुयोग- संयोग से विकसित एक स्वाभाविक और सरल विकास क्रम - व्यवस्था  है.

उपभोत्ता संस्कृति और आधुनिकता ने न केवल व्यक्ति और समाज को ही प्रभावित किया हैं वरन पारिवारिक संस्था की जडें भी हिला कर रख दी हैं.

आधुनिक जीवन शैली , अत्यधिक महत्वकांक्षा और अपना -अपना करियर बनाने का लोभ अपनाते दम्पति , आपस में ज्यादा रूचि नहीं रखते हैं और मजबूरीवश उनका सम्बन्ध केवल एक छत्त के नीचे रहना मात्र ही होता है.

पति-पत्नी-एकल परिवार

पहले संयुक्त परिवार में सास- ससुर , चाचा -चाची, जेठ-जेठानी, ननद- नंदोई इत्यादि का दाम्पत्य -जीवन में काफी दखल रहता था.  पति-पत्नी के अहम टकराने के फलस्वरूप दाम्पत्य जीवन के बिखरने से पहले ही वे दखल दे देते थे और पति-पत्नी का निजी कलेश-कलह आगे नहीं बढ पाता था. अब संयुक्त परिवार विघटित होने लगे  हैं, दखल देने वाला कोई रह नहीं गया है .दूर के नाते-रिश्तेदार भी आत्मीयता के आभाव में प्रभावशाली दखल नहीं दे पाते है, इससे पति- पत्नी के अपने- अपने अहम और  स्वार्थ  की जबरदस्त भिडंत होती है और गृहस्थी  में दरार, टूटन और विघटन  के दर्शन होते हैं.



करियर सवांरने  के लोभ में मध्यम एकांकी -परिवार के पति-पत्नि अपने बच्चों को  नौकरों के हवाले , केयर-सेंटर, बालवाडी या प्री - नर्सरी  में छोड़ कर निश्चिंत हो जाते हैं. केवल नामी स्कूल में नाम लिखा कर, मोटी-मोटी फीस भर कर और अनेकों tuition और coaching  करा कर वे आपने अभिभावक होने के फ़र्ज़ की इतिश्री समझ लेते हैं. इन बच्चों को  पारिवारिक प्रेम-पोषण-सरंक्षण से वंचित रहने के कारण कई मनोविज्ञानिक और व्यक्तिगत समस्याओं  का सामना करना पड़ता है.

पति-पत्नी-करियर

अक्सर  कामकाज करने वाले पति या पत्नि में जो पहले घर आ जाता है, उसे दूसरे  के बाद में आने की कोई उमंग और अधीरता नहीं होती हैं. आधुनिकता की  दुहाई देने वाले पति भी  अकसर पुरातन -पंथी मानसिकता से ग्रसित पाए गए हैं  . पतियों  के अनुसार घर-गृहस्ती चलाना  स्त्रियों का ही कार्य हैं , क्योकि वे उसे संरक्षण  देतें हैं, काम  करने की आज़ादी देतें हैं, समाज  में सर उठा  कर चलने  का गर्व और अधिकार देते हैं , वर्ना अविवाहित महिलाएं या जिनके पति  नहीं होते हैं , उन्हें समाज़ जीने ही कहाँ देता हैं ?



ऐसे पतियों की दिली ख्वाइश होती हैं की अगर पत्नियाँ  उनसे पहले घर आ जाती हैं तो , मुस्करा कर उनका स्वागत करे, उनके कपडे निकाल कर दे, चाय-पानी-नास्ता हाजिर रखे और घर, आपने ऑफिस या बाल-बच्चों की शिकायतों का पोटला न लेकर बैठ जाये.
यहाँ पत्नियों का कहना हैं की वे भी तो घर थक कर आती हैं, उनका भी विश्राम करने का मूड होता हैं,  वैसे अगर पति पहले घर पर आ जाये तो कौन सा   मुस्करा के दरवाजे पर उनका स्वागत करता हैं या चाय-पानी पेश करता हैं ?
करियर  की बुलंदी को छूने की चाहत में अक्सर दम्पतियों में एक दूसरे को धोखा देने और अपने सहकर्मियों  से सम्बन्ध बनाने की प्रवृति धड़ल्ले से विकसित हुई हैं. वैवाहिक संबंधों से छुटकारा पाने की साध पाले हुए लोग अपनी करियर की सफलता के लिए अपने सहकर्मी या जिनसे करियर में उन्नति के अवसर मिलते हैं उनसे अन्तरंग सम्बन्ध बनाने से नहीं हिचकिचाते. यानि करियर के लिए दाम्पत्य-जीवन को दाव पर लगाने वालों की भी कमी नहीं है.

पति-पत्नी-सेक्स

कामकाजी दम्पति अक्सर शीघ्र ही सेक्स से विरक्त हो जाते हैं. बच्चों के जन्म के बाद या अधिकतर दिनभर की भाग दौड़ , विभिन्न प्रकार के तनाव, वातावरण के प्रदुषण और शारीरिक थकान के कारण पति-पत्नी एक दूसरे के लिए क्रमशः साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक पत्रिका बनते जाते हैं.



अपने-अपने अहम , स्वार्थ और आकाँक्षाओं में तालमेल न बैठा पाने के कारन यौन -संबंधों में शिथिलता आती जाती हैं. केवल यौन -सुख पर आधारित दाम्पत्य - जीवन मानसिक और भावनात्मक जुड़ाव की कमी के कारण बोझिल और उबाऊ हो जाते हैं.

पति-पत्नी- विवाहत्तेर संबंध
आमतौर पर माना जाता हैं की यौन-सुख की तलाश में पति-पत्नी विवाहत्तेर सम्बन्ध बनातें हैं. लेकिन हकीकत यह हैं की अक्सर एक दूसरे से बेज़ार हुए  पति -पत्नी जब एक दूसरे की रिपोर्ट-कार्ड में परफोर्मेंस  - वइस,  पासिंग - मार्क्स भी नहीं देते हैं , तभी  वे व्यर्थ में अपने को ------तीसमारखां सिद्ध ----करने के चक्कर में  यहाँ-वहाँ मारे-मारे फिरते हैं.



अपने-अपने करियर को प्रमुखता देते हुए , साथ - साथ काम करने के कारण, लगाव, निर्भरता, अनुराग, और हँसी मजाक़ के कारण अक्सर दम्पति बाहर भावनात्मक सम्बन्ध बना लेते हैं जिसका उदेश्य सेक्स न होकर केवल अपने उबाऊ और कतराने वाले दाम्पत्य-जीवन से कुछ समय के लिए छुटकारा पाना होता है.


पति-पत्नी-सीक्रेट

आजकल दम्पति  पूरे जोर शोर से जतन- पूर्वक अपनी निजता को गोपनीय बना कर रखते हैं  और दूसरी ओर अपने पार्टनर की पूरी -पूरी जासूसी भी करते हैं. एक दूसरे के मोबाइल की कॉल  - डिटेल खंगालना, फ़ेस -बूक की अप - डेट - स्टेटस चेक करना ओर एक दूसरे के देनिक कार्यक्रमों ओर मूड -स्विंग पर पैनी दृष्टी रखना.  यानि दोहरे मापदंड के सभी फोर्मुले अपनाना.

वैवाहिक सम्बन्ध कामचलाऊ तरीके से चलता रहे इसलिए दंपत्ति अक्सर अपने ऑफिस या व्यवसाय की अधिकतर बातें या जानकारी एक दूसरे को नहीं बतातें हैं. उनके अनुसार अगर जरुरत से अधिक बताया गया तो दूसरे पक्ष की दखलंदाज़ी बढ सकती हैं, अपेक्षाएं ओर मांगें बढ सकती हैं और शक की सुई उनके चरित्र की और घूम सकती हैं. इसलिए सब कुछ बताना जरुरी नहीं होता है.

पति-पत्नी- अन्तरंग समय

ऑफिस से घर लौट कर सोते समय तक, छुट्टी के दिन, या एकांत के पलों में अधिकतर दम्पति एक दूसरे के साथ से बचने के लिए अपने लेप- टॉप या मोबाइल का इस्तमाल करना या टी. वी . के प्रोग्राम्स देखना अधिक पसंद करतें हैं.

अक्सर पत्नी के मायके जाने पर या पति के लम्बे टूर पर जाने पर दम्पति , स्वतंत्रता की सुखमय अनुभूति को बांटने के लिए  अपने - अपने कार्यस्थल पर जुलाब जामुन और समोसों  की  पार्टी देते  हैं.

पति-पत्नी- कुछ हमारे हड़प्पा युगीन विचार




लेकिन हकीकत यही है   की पति-पत्नी सर्वश्रेष्ठ   मित्र है , पति - पत्नी  आदर्श जीवनसाथी हैं और पति-पत्नी बेजोड़ प्रेमी भी हैं. जरुरत हैं थोडा संयम, त्याग, सेवा और प्रेम भावना की . नितांत वैक्तित्व  आपेक्षाओं और आवश्कताओं को सामंजस्य  , समर्पण और निष्ठा में बदलने की . शरीर , मन और भावना के तल पर  मिलाने से ही दम्पति  true soul -mate बन पाते हैं.

Dum dara dum dara मस्त  मस्त
Dara dum dara dum dara मस्त  मस्त
Dara dum dara  dum dum       
ओ  हमदम  बिन  तेरे  क्या  जीना 
ओ  हमदम  बिन  तेरे  क्या  जीना 

Thursday, August 2, 2012

घर के साथ बाहर का काम कर रहा है औरत को बीमार Women empowerment

सेवा क्षेत्र में घटती महिलाओं की भागीदारी
ऋतु सारस्वत, समाजशास्त्री 
महिलाओं की सेवा क्षेत्र में लगातार घट रही भागीदारी को देखते हुए योजना आयोग ने सरकार को यह सुझाव दिया है कि 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान देश में सृजित होने वाली ढाई करोड़ नई नौकरियों में से आधी महिलाओं को मिलें। यह प्रस्ताव महिला सशक्तीकरण को नई दिशा दे सकता है। यूं तो ‘महिला सशक्तीकरण’ एक व्यापक अवधारणा है, पर उसका केंद्रबिंदु ‘निर्णय लेने की स्वतंत्रता’ है और यह तभी संभव है, जब महिलाएं आत्मनिर्भर हों। महिलाएं देश का महत्वपूर्ण मानव संसाधन हैं, इसलिए सामाजिक-आर्थिक विकास का अत्यंत महत्वपूर्ण निर्धारक तत्व भी हैं। चिंता का विषय यह है कि पिछले तीन दशकों में महिलाओं के वंचित रह जाने की समस्या को खत्म करने में सफलता नहीं मिली है। आम राय यह है कि आर्थिक मोर्चे पर भारतीय महिलाएं बड़ी तेजी के साथ आगे बढ़ रही हैं, परंतु आंकड़े इससे उलट कुछ और बयान कर रहे हैं। 2009-10 के एक सर्वे के मुताबिक, ‘कार्य’ में महिलाओं की भागीदारी की दर 2004-05 में 28.7 प्रतिशत थी, जो 2009-10 में घटकर 22.8 प्रतिशत रह गई। जब देश के चुनिंदा आला पदों पर आसीन महिलाएं फोर्ब्स पत्रिका में स्थान पा रही हैं, तो आर्थिक मोर्चे पर महिलाओं की भागीदारी घटना हैरत की बात है। दरअसल, भारतीय महिलाओं के लिए यह एक ऐसा संक्रमण काल है, जहां एक ओर उनके लिए आर्थिक स्वतंत्रता ने द्वार खोल रखे हैं, तो दूसरी ओर उनकी परंपरागत पारिवारिक जिम्मेदारियां हैं, जिन्हें निभाने की सीख उन्हें बचपन से ही दी जाती है। यह जरूर है कि शहरी संस्कृति से ताल्लुक रखने वाले ऐसे मध्यवर्गीय परिवारों की तादाद में बढ़ोतरी हुई है, जिन्होंने अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए औरतों को बाहर जाकर काम करने की ‘इजाजत’ दी है। इसके बावजूद उन्हें परिवार के कार्यो से मुक्ति मिलती हो, ऐसा नहीं है। दूसरी ओर कार्यस्थल पर होने वाला लैंगिक भेदभाव, उनके प्रबंधन, नेतृत्व व कार्यक्षमताओं पर विश्वास न करने की मानसिकता, उन्हें उनके पुरुष सहकर्मियों की अपेक्षाकृत अधिक चुनौती देती है। यही दोहरा दबाव भारतीय महिलाओं  को ‘आर्थिक स्वतंत्रता’ की सोच को ही तिलांजलि देने के लिए प्रेरित करता है। ब्रिटेन में हुए एक सर्वे के मुताबिक, सुबह छह बजे बिस्तर छोड़ने के बाद से रात 11 बजे से पहले तक उन्हें एक पल की फुरसत नहीं होती। अनवरत काम से उनका शरीर बीमारियों का गढ़ बनने लगता है। यह स्थिति भारतीय संदर्भ में और गंभीर है, जहां पुरुष घरेलू कामकाज में सहयोग देना आज भी उचित नहीं समझते। क्या स्त्री की इससे मुक्ति संभव है? है, बशर्ते परिवार के पुरुष सदस्य उसे अपनी ही भांति इंसान मानना शुरू कर दें और घर की जिम्मेदारियों को निभाने में उसके वैसे ही सहयोगी बनें, जैसे परिवार की आर्थिक सुदृढ़ता के लिए स्त्री ने बाहर जाकर काम करना स्वीकारा है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
साभार दैनिक हिन्दुस्तान दिनांक 3 अगस्त 2012 पृष्ठ 12 
http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/article1-story-57-62-247802.html

Tuesday, July 31, 2012

इंसानी दिमाग स्त्री और पुरुषों को अलग-अलग तरीके से देखता है. स्त्रियों का दिमाग भी यह भेदभाव करता है.

नज़र का फर्क 
यह शिकायत महिलाओं, बल्कि संवेदनशील पुरुषों की भी रही है कि समाज में स्त्री को एक वस्तु की तरह देखा जाता है, इंसान की तरह नहीं। मनोरंजन के साधन और व्यावसायिक हित महिलाओं को वस्तु की तरह पेश किए जाने को बढ़ावा दे रहे हैं। स्त्री-पुरुष बराबरी हासिल करने के लिए जरूरी है कि स्त्रियों को सिर्फ एक वस्तु नहीं, एक इंसान की तरह सम्मान देना जरूरी है। लेकिन इसके लिए यह जानना जरूरी है कि इस दुराग्रह या पक्षपात की जड़ें कितनी गहरी हैं। द यूरोपियन जर्नल ऑफ सोशल साइकोलॉजी में एक शोध प्रकाशित हुआ है, जिसके मुताबिक इंसानी दिमाग स्त्री और पुरुषों को अलग-अलग तरीके से देखता है। वह पुरुषों को अलग नजरिये से देखता है और स्त्रियों को अलग। इसी वजह से स्त्रियों को यौन सुख का एक साधन मानने की प्रवृत्ति विकसित हुई है। शोध एक चौंकाने वाला निष्कर्ष भी देता है कि सिर्फ पुरुषों का ही नहीं, स्त्रियों का दिमाग भी यह भेदभाव करता है। जब हम किसी पुरुष को देखते हैं, तो हमारे दिमाग में जिस तरह की प्रक्रिया सक्रिय होती है, उसे ‘ग्लोबल’ या सार्वभौमिक संज्ञान प्रक्रिया कहते हैं। यह ऐसी प्रक्रिया होती है, जिसमें हम किसी व्यक्ति को उसकी संपूर्णता में देखते और पहचानते हैं। वहीं जब हम किसी स्त्री को देखते हैं, तो आम तौर पर हमारा दिमाग जिस प्रक्रिया का सहारा लेता है, उसे ‘लोकल’ या स्थानीय संज्ञान प्रक्रिया कहते हैं। इस प्रक्रिया से हम चीजों को, जैसे कार या मकान को देखते हैं। इसमें हम किसी चीज को कई हिस्सों के एक समुच्चय की तरह देखते हैं। यह देखा गया कि स्त्री और पुरुष, दोनों के दिमाग एक ही तरह से काम करते हैं, अर्थात स्त्रियां भी स्त्रियों को वस्तु की तरह ही देखती हैं। वैज्ञानिकों ने इसके लिए एक प्रयोग किया। उन्होंने कुछ पुरुषों और स्त्रियों को कई स्त्री-पुरुषों की तस्वीरें दिखाईं। इसके बाद उन्हें तस्वीरों को फिर से दिखाया गया, इस वक्त मूल तस्वीर के साथ उसी तस्वीर को थोड़ा बदलाव करके दिखाया गया, जिसमें उनके किसी यौन सूचक अंग को ज्यादा स्पष्ट किया गया था। इसके बाद इन लोगों से पूछा गया कि उन्होंने पहले कौन-सी तस्वीर देखी थी? शोधकर्ताओं ने पाया कि ज्यादातर स्त्री-पुरुषों ने महिलाओं की तस्वीरों के बारे में ठीक-ठीक बता दिया, लेकिन पुरुषों की तस्वीरों के बारे में उतना ठीक नहीं बता पाए। इसका मतलब यह है कि पुरुषों के शारीरिक रूप में परिवर्तन पर वे ध्यान नहीं दे पाए, लेकिन स्त्रियों की तस्वीरों में उन्हें फर्क तुरंत समझ में आ गया। वैज्ञानिक यह मानते हैं कि हमारे दिमाग की यह प्रक्रिया जैविक वजहों से हो सकती है। प्रजनन और वंश-वृद्धि जीवों का बुनियादी संवेग है। चूंकि प्रजनन स्त्रियों से होता है, इसलिए आदिम युग से पुरुषों का दिमाग स्त्रियों को यौन और प्रजनन की दृष्टि से देखने का आदी हो गया है। हालांकि यह जरूर उलझाने वाला तथ्य है कि स्त्रियों के साथ ऐसा क्यों है। वैज्ञानिकों का कयास है कि शायद आदिम युग में स्पर्धा और तुलना की वजह से उनमें भी पुरुषों की तरह ही अन्य स्त्रियों को वस्तु की तरह देखने की आदत विकसित हो गई है। लेकिन अब मानव समाज बहुत विकसित हो गया है और उसे आबादी बढ़ाने वाले आदिम संवेगों की जरूरत नहीं है। अब तो समस्या आबादी पर नियंत्रण की है। सभ्यता और विज्ञान के विकास ने मानव जाति के लिए कई बुनियादी पैमाने बदल डाले हैं, इन्हीं में स्त्री-पुरुष के बीच गैरबराबरी का मसला भी है। वैज्ञानिक मान रहे हैं कि चूंकि वे गैरबराबरी और स्त्रियों को ‘वस्तु’ मानने के जैविक आधार को कुछ हद तक जान पाए हैं, तो इससे इनके बीच की गैरबराबरी मिटाने में भी सहायता मिलेगी।  
संपादकीय दैनिक हिन्दुस्तान दिनांक 30 जुलाई 2012
Source : http://www.livehindustan.com/news/editorial/subeditorial/article1-story-57-116-246626.html

Thursday, May 24, 2012

औरत की हक़ीक़त Part 4 (प्रेम और वासना की रहस्यमय पर्तों का एक मनोवैज्ञानिक विवेचन) - Dr. Anwer Jamal


(...और अब आगे )
‘यहां कब से हो ?‘-धनवीर जी ने तारा से पूछा।
‘2 महीने से।‘
‘इससे पहले कहां थीं ?‘
‘थी कहीं, किसी को इससे क्या ?, अपना काम करो सेठ, बेकार में ग़ुस्सा आ जाएगा।‘-तारा ने कुछ नाराज़गी से कहा।
‘इस धंधे में कैसे आ गईं ?‘-धनवीर जी को जैसे उसकी नाराज़गी की कोई परवाह ही न हो।
‘क्या करेंगे पूछकर ?-तारा ने उकताकर पूछा।
‘रात हमारी है, इसे गुज़ारना है तो कुछ बात तो करनी ही पड़ेगी। वैसे भी तुम पढ़ी लिखी लगती हो‘-धनवीर जी ने कहा।
तारा को लगा कि धनवीर सचमुच ही अलग तरह का आदमी है। उसने पूछा-‘क्या आप पुलिस के आदमी हैं ?‘
‘नहीं। क्या तुम्हें मैं पुलिस का आदमी लगता हूं ?‘
‘नहीं, पुलिस के आदमी आपकी तरह बैठे तो नहीं रहते और फिर कुछ देकर भी नहीं जाते लेकिन सवाल आप पुलिस की तरह ही पूछ रहे हैं। इसलिए पूछा।‘-तारा ने खिड़की पर नज़र डाली तो चांद कुछ और बुलंद हो गया था।
‘इस धंधे में किसने धकेला ?‘-धनवीर जी ने पूछा।
तारा चुप रही।
‘नहीं बताओगी, तब भी कोई बात नहीं है। हमें पता है।‘-धनवीर जी ने कहा।
‘आपको कैसे पता है ?‘-तारा की उत्सुकता जाग उठी।
‘कुछ कहानियां सैट हैं इस धंधे में आई लड़कियों की। किसी को उसके मां बाप छोड़कर मर गए तो उसके रिश्तेदार बेच देते हैं और किसी को उसका शराबी बाप बेच देता है लेकिन तुम्हें इनमें से किसी ने नहीं बेचा।‘-धनवीर जी ने टेक लगाते हुए कहा।
‘हां, यह तो आपने सही कहा। अब आप यह भी बता दें कि मुझे किसने यहां पहुंचाया ?‘-तारा ने ताज्जुब से पूछा।
‘तुम्हारा पति ही तुम्हें यहां बेच गया है। उसने तुमसे प्यार का ढोंग किया, बड़े बड़े सपने दिखाए, अपनी शान दिखाई, तुम्हें तोहफ़े दिए और फिर तुम्हें भगा लाया। किसी मंदिर में तुम्हारी मांग भी भर दी। तुम उसके साथ यहां चली आईं और वह तुम्हारी क़ीमत लेकर चुपचाप यहां से चला गया तुम्हें बिना बताए।‘-धनवीर जी ने उसे उसकी कहानी बताई तो वह हैरत में पड़ गई।
‘हां, यही सब तो हुआ मेरे साथ। या तो आप कोई ज्योतिषी हैं या फिर आपको यह सब पारो ने बताया है।‘-तारा ने अंदाज़े से कहा।
‘हा हा हा‘-धनवीर जी अपने आप को ज्योतिषी के रूप में कल्पना करके हंसने लगे। तारा उनके मुंह को देख रही थी। उसे भी अब धनवीर जी में दिलचस्पी पैदा होने लगी थी।
‘नहीं ऐसा नहीं है। न तो हम ज्योतिषी हैं और न ही पारो ने हमें कुछ बताया है। हमने कहा न कि इस धंधे में फंसी हुई लड़कियों की चंद कहानियां तय हैं। तुम पढ़ी लिखी हो, शक्ल सूरत से अच्छी हो और बोल चाल में भी सलीक़ा है। इसी से हमने समझ लिया कि तुम किसी क़स्बे के अच्छे घर की लड़की हो और किसी के धोखे में आकर यहां तक चली आईं। तुम्हारी उम्र ही ऐसी है कि जब लड़की एक ख़ूबसूरत राजकुमार के सपने देखने लगती है। धोखेबाज़ इसी का फ़ायदा उठाकर लड़कियों को बर्बाद कर देते हैं। बस, इस तरह हमने तुम्हारी कहानी जान ली।‘-धनवीर जी उसे तफ़्सील से समझाया।
‘हुं, बात तो आपकी सही है। मैंने अपने मां-बाप से ज़्यादा अपने प्यार पर भरोसा किया और ख़ुद को बर्बाद कर लिया।‘-तारा को अपनी पुरानी ज़िंदगी याद आई तो उसकी आंखों में नमी सी आ गई। अचानक उसे उबकाई सी आई और वह उखड़कर बोली-‘देखा सेठ, पिछली ज़िंदगी की याद दिलाकर आपने कर दिया न सारा मूड ख़राब।‘
‘मूड नहीं, तबियत ख़राब है तुम्हारी। तुम मां बनने वाली हो।‘-धनवीर जी ने उसे एक और हक़ीक़त बताई।
‘हां, कुछ दिन ऊपर हो गए हैं। क्या करें सेठ, आने वाला अपना मज़ा देखता है और सज़ा हम भोगते हैं। ख़र्चा अलग से पड़ता है। क्या फ़ायदा इस कमाई से, सब रख-रखाव में ही ख़र्च हो जाती है।‘-तारा ने अपना दुख बयान किया।
‘...तो फिर छोड़ क्यों नहीं देतीं इस धंधे को ?‘-धनवीर जी ने पूछा।
‘जिस दिन पारो के पचास हज़ार रूपये उतार दूंगी, उसी दिन यह धंधा छोड़ दूंगी लेकिन इसमें बरसों खप जाएंगे।‘-तारा ने अपना इरादा ज़ाहिर किया।
‘किसी से उधार लेकर भी तो पारो को रक़म अदा कर सकती हो।‘-धनवीर जी ने मुस्कुराते हुए कहा।
‘किसी से ले सकती तो ज़रूर ले लेती और इस नर्क से मुक्त हो जाती साहब लेकिन मुझे कौन देगा इतनी बड़ी रक़म ?‘
‘हम देंगे।‘-धनवीर जी ने बदस्तूर मुस्कुराते हुए कहा।
‘अयं, आप हमें इतनी बड़ी रक़म क्यों देंगे भला ?‘-तारा ने शोख़ी से पूछा।
‘बस ऐसे ही।‘
‘ऐसे ही तो कोई नहीं देता साहब। ज़रूर आप हमें अपनी कोठी पर रखना चाहते होंगे ?, है न ?‘
‘चलो ठीक है। रंडी से रखैल बन जाएंगे। अच्छा रहेगा।‘
‘कोठी पर तो हम तुम्हें रखना चाहते लेकिन रखैल बनाकर नहीं बल्कि अपनी पत्नी बनाकर।‘-धनवीर जी ने पूरी गंभीरता से कहा तो तारा को अपनी तक़दीर पर यक़ीन ही नहीं आया।
‘मुझसे शादी करोगी ?‘-धनवीर जी ने तारा का हाथ थामकर पूछा तो तारा घबरा सी गई।
‘न कहने का तो सवाल ही नहीं है लेकिन मुझसे शादी करके आपको क्या मिलेगा साहब ?‘-उसने हैरत से पूछा।
‘मुझे मंज़िल मिल जाएगी, मेरी तलाश ख़त्म हो जाएगी ?‘-धनवीर जी ने गंभीरता से कहा।
‘तलाश ?, आपको किस चीज़ की तलाश थी ?, क्या मेरी ?‘-तारा की हैरत और ज़्यादा बढ़ गई।
‘कोई तलाश करता है और कोई इंतेज़ार और कोई दोनों। हमें तलाश थी और तुम्हें इंतेज़ार। तुम हमारी ज़रूरत हो और हम तुम्हारी। इतना समझ लो, बस काफ़ी है। कोठी, कार, बिज़नैस और दौलत हरेक चीज़ है हमारे पास। तुम्हें ज़िंदगी भर कोई तकलीफ़ न होगी।‘-धनवीर जी ने बात का रूख़ मोड़ने के लिए कहा।
‘जो इज़्ज़त आप दे रहे हैं, वह हरेक चीज़ से बढ़कर है।‘-तारा की आंखों में आंसू छलछला आए और जल्दी ही उसने अपने कपड़े वग़ैरह एक बैग में समेट लिए।
धनवीर के बुलाने पर वह पारो को बुला लाई। उसे उम्मीद नहीं थी कि पारो उसे आसानी से जाने देगी लेकिन जब धनवीर जी ने उसे नोटों को एक मोटा सा बंडल पकड़ाया तो उसने लेने से ही इंकार कर दिया। पारो बोली-‘साहब, आप शर्मिन्दा न करें। पहले ही आप इतना कुछ दे चुके हैं और आपका अपना कोई लालच भी तो नहीं है।‘
’तुमने ख़र्च किया है तो तुम्हारी रक़म डूबनी नहीं चाहिए। हमारा क्या है, हम तो आते रहेंगे और ले जाते रहेंगे लेकिन एक फ़र्क़ है पारो।‘
‘वह क्या सेठ जी ?‘-पारो ने पूछा।
‘तारा को हम अपनी दुल्हन बनाएंगे।‘-धनवीर जी ने उसे फ़र्क़ बताया।
‘हां, इसलिए इसकी कोई भी निशानी तुम्हारे पास या किसी और के पास भी बाक़ी नहीं रहनी चाहिए। समझ गईं न तुम।‘-धनवीर जी ने ग़ुर्राते हुए कहा।
‘मैं समझ गई साहब, मैं बिल्कुल समझ गई। आप चिंता न करें। तारा कभी यहां आई ही नहीं थी।‘-पारो ने घबराते हुए कहा। उसके लहजे से तारा समझ गई कि धनवीर जी कोई मामूली चीज़ नहीं हैं।
‘मैं तुम्हारी मुजरिम हूं बेटा, मुझे माफ़ दो, तुम सचमुच देवता हो।‘-यह कहते हुए पारो धनवीर जी के पैरों में गिर पड़ी। ‘सेठ जी‘ के बजाय पारो ने धनवीर जी को अचानक ही बेटा कहकर माफ़ी मांगी तो तारा को बहुत अजीब सा लगा। पारो तो एक संगदिल और बेहद लालची औरत है। इसके अंदर पश्चात्ताप कैसे जाग उठा ?
‘हम तो देवता नहीं हैं लेकिन तुम बहुतों की मुजरिम ज़रूर हो। हम तो आज तुम्हें माफ़ कर रहे हैं लेकिन ऊपर वाले को तुम क्या मुंह दिखाओगी ?‘-धनवीर जी तारा को लेकर पारो के कोठे से निकल आए और पारो वहीं ज़मीन पर बैठ कर तारा को जाते हुए देखती रही। आज उसे तारा की क़िस्मत से जलन हो रही थी। उसकी ज़िंदगी में भी कई हाथ उसकी तरफ़ बढ़े कि उसे सहारा दें लेकिन उसी ने किसी का कभी ऐतबार न किया।

सेठ धनवीर जी उसे लेकर कुछ दिन दिल्ली के होटल में ठहरे। इन दिनों में उन्होंने तारा के लिए कुछ कपड़े और ज़ेवर ख़रीदे, उसका पासपोर्ट बनवाया और आदमी भेजकर उसके मां-बाप को भी वहीं बुलवाया। उन्होंने उसके मां बाप को कोई कहानी बताई कि तारा को अंग बेचने वाले डाक्टर के बदमाशों ने अग़वा कर लिया था। किसी तरह वह वहां से भाग निकली लेकिन अपने यह सोचकर अपने घर नहीं गई कि उसके घरवाले उसकी बात का विश्वास नहीं करेंगे। एक दिन वह उनसे नौकरी मांगने आई तो उसने अपनी दुख भरी कहानी सुनाई। हमने आपको इसलिए यहां बुलाया है कि आप इसे साथ ले जाना चाहें तो अपने साथ ले जाएं और अगर आप अपना आशीर्वाद दें तो हम इसके साथ विवाह करना चाहते हैं।
धनवीर जी तो उनकी सारी समस्या ही हल कर रहे थे। उन्हें भला क्या इन्कार होता ?
वे ख़ुशी ख़ुशी तैयार हो गए।
धनवीर जी तारा और उसके मां-बाप को लेकर अपनी कोठी में आ गए। यह आलीशान कोठी नोएडा में बनी थी। धनवीर जी ने तारा के साथ शादी की और बड़े शानदार तरीक़े से भी की और बड़े सलीक़े से भी। उन्होंने अपने दोस्तों को भी बुलाया और तारा के रिश्तेदारों को भी। किसी रिश्तेदार की हिम्मत न पड़ी कि वह तारा से कुछ भी पूछ सके। दौलत हरेक सवाल को दबा देती है। जिसके पास दौलत है, वही इज़्ज़त वाला है, समाज की सोच यही है। आज तारा की इज़्ज़त के सामने उसके हरेक रिश्तेदार की इज़्ज़त छोटी पड़ गई थी। धनवीर जी का नर्सरी का बहुत बड़ा काम था। उनका बिज़नैस विदेशों तक फैला हुआ था। उनकी नर्सरी में बहुत सी औरतें काम करती थीं। बाद में तारा को पता चला कि धनवीर जी ने उसकी तरह उनका भी उद्धार किया था। किसी के पति को ढूंढकर निकाला और किसी की शादी कराई। किसी को अपने यहां रोज़गार दिया और किसी को अपनी सिफ़ारिश से कहीं और काम दिलाया। समाज और राजनीति में उनका बड़ा दख़ल था। उनकी शादी में भी बड़ी बड़ी हस्तियां शामिल हुईं।



शादी में तारा के रिश्तेदार तो शामिल हुए लेकिन अब तक उसने धनवीर जी के किसी रिश्तेदार को न देखा था। बड़े लोगों की बात भी बड़ी होती है। होगी कोई बात, उसने सोचा या फिर हो सकता है कि धनवीर जी के रिश्तेदार उसके साथ उनकी शादी से ख़ुश न हों या हो सकता है कि धनवीर जी का कोई रिश्तेदार ही न हो।
‘हर चीज़ वक्त के साथ ख़ुद ही सामने आ जाएगी।‘-सजी हुई सुहाग सेज पर बैठी हुई तारा ने सोचा और गर्दन उठा कर धनवीर जी की मां के बड़े से फ़ोटो को देखा। फ़ोटो पर लगी हुई माला बता रही थी कि अब वह इस दुनिया में नहीं हैं। यह फ़ोटो उनकी जवानी की फ़ोटो थी। उसने देखा कि वह मुस्कुरा रही थीं। मुस्कुराते हुए उनके गालों में गड्ढे पड़ रहे थे।
तभी धनवीर जी कमरे में दाखि़ल हुए और सबसे पहले अपनी मां के फ़ोटो के सामने खड़े हो गए। काफ़ी देर तक वह खड़े रहे। ऐसा लग रहा था मानों वह अपनी मां से बातें कर रहे हों। उनसे आशीर्वाद मांग रहे हों। तारा भी मन ही मन उनसे आशीर्वाद मांगने लगी। जिस औरत ने धनवीर जी को जन्म दिया है, वह वाक़ई देवी होगी। धनवीर जी ने उसे कोठे वाली से कोठी वाली बना दिया था।
अचानक तारा के कानों में धनवीर के रोने की आवाज़ें पड़ीं तो वह अपने ख़यालों से बाहर निकली। आंसू पोंछकर धनवीर जी पलटे और उसके पास बेड पर आकर लेट गए और जल्दी ही वह सो गए।
‘शायद आज ज़्यादा ही थक गए हैं या फिर मां की याद ने उनका दिल बदल दिया।‘-तारा सोचती रही और सोचते सोचते वह भी सो गई। रोज़ रोज़ यही होने लगा तो तारा ने एक दिन पूछने की ठानी।
‘मेरा गर्भ साफ़ कब कराएंगे आप ?‘-तारा ने आखि़र सीधे ही पूछ लिया।
‘क्यों ?‘-धनवीर जी ने उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए पूछा।
‘क्योंकि यह आपका नहीं है।‘
‘तुम हमारी हो तो अब यह भी हमारा है।‘-धनवीर जी ने सुकून से कहा।
‘...इसके कारण आप मुझसे दूर हैं, मेरी ख़ता मुझे दिन रात खाए जा रही है।‘-तारा ने रोते हुए।
‘तुमने कोई ख़ता नहीं की बल्कि तुम पर ज़ुल्म हुआ है। तुम ख़ुद तो एक मासूम पर ज़ुल्म न करो।‘-धनवीर जी की आंखों में सच्चाई झलक रही थी।
‘ऐसा कब तक चलेगा ?‘-तारा ने रोते हुए पूछा।
‘तुम्हारे अमेरिका से लौटने तक।‘
‘क्या ...?‘
‘हां, कल तुम हमारे साथ अमेरिका जा रही हो।‘-धनवीर जी ने उसके आंसू पोंछते हुए कहा।-‘इन दिनों में तुम्हारा ख़ुश रहना बहुत ज़रूरी है।‘

धनवीर जी अमेरिका आते जाते रहे लेकिन तारा बदस्तूर वहीं रही एक कोठी में, एक डॉक्टर की देखरेख में। जब वह अमेरिका से लौटी तो उसकी गोद में पारूल थी। पारूल के आने के बाद तारा को धनवीर जी से कोई शिकायत बाक़ी न रही थी। उन्होंने उसे भी भरपूर किया और उसकी बेटी पारूल को भी एक बाप की तरह ही प्यार दिया। फिर दो-दो साल के अंतर से अमन और कबीर पैदा हुए और पांच साल बाद सिमरन। परिवार पूरी तरह भरपूर हो गया।
‘आपने मुझसे शादी क्यों की ?‘-एक दिन तारा ने कुछ ख़ास लम्हों में यह सवाल किया तो धनवीर जी ज़ोर से हंसे।-‘मुझ लंगड़े को भला कौन अपनी लड़की देता ?‘
‘इन्कार भी कोई न करता।‘-तारा ने उनके बालों में उंगलियां फेरते हुए कहा।
‘जोड़े आसमान पर बनते हैं।‘-धनवीर जी ने एक पुरानी कहावत का सहारा लिया।
‘आपने मुझे कितना कुछ दिया है और मैं ...‘-तारा की आवाज़ रूंध गई।
‘तुमने हमें प्यारे से बच्चे दिए हैं और कुछ उससे भी बढ़कर दिया है जिसे तुम कभी समझ नहीं सकतीं।‘-धनवीर जी उसके मन में उतरते चले गए।
वक्त गुज़रता रहा। बच्चे बड़े हुए और पढ़ लिखकर वे अच्छे घरों में ब्याहे भी गए। दोनों लड़कों ने अपने अपने बिज़नैस जमा लिए। धनवीर जी ने उन्हें रहने के लिए भी अलग अलग कोठियां दे दीं। धनवीर जी अपने बेटों को सलाह देते थे लेकिन उन पर हुकूमत नहीं करते थे। उन्होंने जो करना चाहा, उन्हें करने दिया। उन्होंने जिन लड़कियों से शादी करनी चाही, उन्हें करने दी। उसने कुछ कहना चाहा तो वह बोले-‘तारा, जीवन उनका है तो फ़ैसला भी उनका ही होना चाहिए न ?
‘फिर हम मां-बाप किस लिए हैं ?‘-तारा ने झुंझलाकर पूछा था।
‘यह देखने के लिए कि उनका भला किस बात में है ?, अपनी पसंद उन पर थोपने के लिए नहीं और न ही उन्हें कुछ पसंद करने से रोकने के लिए।‘-धनवीर जी का जवाब उसे लाजवाब कर गया।
‘ये बातें आपने कहां पढ़ी हैं ?‘
‘पढ़ी नहीं हैं बल्कि सीखी हैं। ये बातें तो हमने हाजी अब्बा से सीखी हैं।‘
‘हाजी अब्बा से ?, क्या नासिर भाई और ग़ज़ाला बाजी के फ़ादर से ?‘
‘हां, वह गुज़र चुके हैं। उन्होंने ही हमें नर्सरी का काम सिखाया। जो कुछ भी हम आज हैं। हाजी अब्बा की वजह से ही तो हैं। उनका कहना था कि तुम्हारे बच्चे तुम्हारी नक़ल करेंगे। जो तुम आज हो, वे कल वही बनेंगे। तुम्हारे बच्चे अच्छे बनें इसलिए ख़ुद अच्छे बनो, अच्छाई की मिसाल बनो।‘
‘...तो फिर आपने किसी अच्छी लड़की से शादी क्यों न की ?‘-दिल में हमेशा से घूमते हुए सवाल को उसने आज एक बार फिर पूछ डाला। धनवीर जी का चेहरा पत्थर की तरह सख्त हो गया और वह ख़ामोश हो गए।
‘आय एम वैरी सॉरी।‘-तारा को अपनी ग़लती का अहसास हो गया था।
धनवीर जी वहां से उठकर चले गए और तारा ने तय किया कि अब वह उनसे ऐसा कोई सवाल न करेगी जो उन्हें दुख दे।

इंसान अपने इरादे का मालिक है लेकिन अपने ख़याल का नहीं। इरादा सोच समझ कर किया जाता है और उसे पूरा करना, न करना भी अपने हाथ में है लेकिन ख़याल किसी का पाबंद नहीं होता। तारा ने फिर कभी धनवीर जी से यह सवाल तो न किया लेकिन यह सवाल उनके ख़यालों में मौजूद हमेशा रहा। तारा ख़ुद ही यह सवाल हल करने की कोशिश करती रही और उम्र यूं ही कटती रही और इतनी कट गई कि षष्ठि पूर्ति का वक्त आ पहुंचा।
तारा देवी गहनों में लदी हुई दुल्हन की तरह अपने बेड पर बैठी थीं और यह सवाल उनके दिल में ज़ोर ज़ोर से सिर उठा रहा था कि ‘इतने धनी-मानी और देवता आदमी ने एक वेश्या से शादी क्यों की ?‘
जो सवाल हल न हो पाए वह आदमी के लिए राज़ बन जाता है। हमराज़ ही कोई राज़ छिपाए, इसे औरत की फ़ितरत कभी गवारा नहीं करती। धनवीर जी के अहसानों तले दबी हुई तारा ने उनसे कभी यह सवाल न किया लेकिन आज यही एक सवाल उनके दिलो-दिमाग़ को झिंझोड़ने लगा। उन्हें लग रहा था कि जैसे उनका वुजूद धनवीर जी जैसे देवता के दामन पर एक दाग़ है। जिस दाग़ से दुनिया दामन बचाती है, उसे उन्होंने ख़ुशी ख़शी क्यों क़ुबूल कर लिया ?



(...जारी, डा. अनवर जमाल की क़लम से एक ऐसा अफ़साना जो दिल को छूता है, दिमाग़ को झिंझोड़ता है और फिर सीधे रूह में उतर जाता है, नेट पर पहली बार)