Thursday, May 16, 2013

देवर ..आधे पति परमेश्वर-पल्लवी त्रिवेदी


एक लड़का और एक लड़की की शादी हुई ...दोनों बहुत खुश थे! स्टेज पर फोटो सेशन शुरू हुआ! दूल्हे ने अपने दोस्तों का परिचय साथ खड़ी अपनी साली से करवाया " ये है मेरी साली , आधी घरवाली " दोस्त ठहाका मारकर हंस दिए !
दुल्हन मुस्कुराई और अपनी सहेलियों का परिचय अपनी सहेलियों से करवाया " ये हैं मेरे देवर ..आधे पति परमेश्वर "

ये क्या हुआ ....? अविश्वसनीय ...अकल्पनीय ! भाई समान देवर के कान सुन्न हो गए! पति बेहोश होते होते बचा!

दूल्हे , दूल्हे के दोस्तों , रिश्तेदारों सहित सबके चेहरे से मुस्कान गायब हो गयी! लक्ष्मन रेखा नाम का एक गमला अचानक स्टेज से नीचे टपक कर फूट गया! स्त्री की मर्यादा नाम की हेलोजन लाईट भक्क से फ्यूज़ हो गयी!

थोड़ी देर बाद एक एम्बुलेंस तेज़ी से सड़कों पर भागती जा रही थी! जिसमे दो स्ट्रेचर थे!
एक स्ट्रेचर पर भारतीय संस्कृति कोमा में पड़ी थी ... शायद उसे अटैक पड़ गया था!
दुसरे स्ट्रेचर पर पुरुषवाद घायल अवस्था में पड़ा था ... उसे किसी ने सर पर गहरी चोट मारी थी!

आसमान में अचानक एक तेज़ आवाज़ गूंजी .... भारत की सारी स्त्रियाँ एक साथ ठहाका मारकर हंस पड़ी थीं !
- पल्लवी त्रिवेदी

Thursday, April 11, 2013

रविश कुमार जी ‘बॉब्स अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार 2013‘ में चल रही गड़बड़ियों के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं।


‘‘औरत की हक़ीक़त‘ को वोट देने के बाद भी वहां वोट दर्ज नहीं होता। इसमें आयोजकों की कोई साज़िश तो नहीं है ?‘‘
आज हमें एक ब्लॉगर मित्र ने फ़ोन पर यह कहा तो हमें हैरत हुई कि 
भी बदइंतेज़ामी का शिकार निकला।
हिन्दुस्तानी औरत का नसीब ही ऐसा है कि उसके बारे में आवाज़ उठाओ तो उसे देस में भी दबा दिया जाता है और बिदेस में भी।

ब्लॉग-चयन के लिए कुछ हिन्दी ब्लॉगर्स ने सीधे सीधे एंकर रविश कुमार जी को ज़िम्मेदार ठहरा दिया है। यह एक ग़लत बात है।
‘औरत की हक़ीक़त‘ ब्लॉग की वोटिंग ‘ज़ीरो‘ रहना इस बात का सुबूत है कि इन सारी अनियमितताओं के पीछे कुछ दूसरे छुटभय्ये टेक्नीशियन्स ज़िम्मेदार हैं। रविश कुमार जी इस तरह ग़ैर ज़िम्मेदारी से काम करते तो वह इतनी तरक्क़ी कैसे कर पाते ?
...लेकिन रविश कुमार जी को ऐसे ग़ैर-ज़िम्मेदारों का पता ज़रूर लगाना चाहिए, जिनकी वजह से उनका नाम ख़राब हो रहा है।
रविश कुमार जी पर पूरे मामले को जाने बिना ही इल्ज़ाम लगाना एक दुखद बात है। इधर हिंदी ब्लॉगर्स के नामित होने के बाद उन लोगों को जलन खाए जा रही है जो कि हरेक ईनाम का हक़दार ख़ुद को मानते हैं। उन्होंने बदतमीज़ियों का एक तूफ़ान खड़ा कर दिया है। हमारे ब्लॉग ‘ ब्लॉग की ख़बरें‘ पर ये सब ख़बरें पढ़ी जा रही हैं। हिन्दी को नुक्सान पहुंचाने वाले इसके अपने ही हैं। ‘बॉब्स अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार 2013‘ एक बार फिर इन्हें बेनक़ाब कर गया।
बहरहाल इस बहाने ‘औरत की हक़ीक़त‘ ब्लॉग बहुत पढ़ा गया। इसके लिए रविश जी और जर्मन आयोजकों (अंतरराष्ट्रीय ब्रॉ़डकॉस्टर डॉयचे वेले) का शुक्रिया।
हमारे एक अन्य ब्लॉग 'बुनियाद' पर भी रविश कुमार जी का और दूसरे पाठकों का स्वागत है।
इसके अलावा हमारे कुछ अन्य ब्लॉग यह हैं-

My blogs

इनके अलावा भी हमारे कुछ दूसरे ब्लॉग हैं। उनके लिंक फिर कभी शेयर किए जाएंगे।
इस आयोजन में दूसरे उम्दा ब्लॉग के साथ ‘हलाल मीट‘ भी चुना गया। इस ब्लॉग का कन्टेंट कितना भी उम्दा क्यों न हो लेकिन इसका चुनाव ग़लत श्रेणी में किया गया है।

Saturday, March 2, 2013

हिंदी में स्त्रियों का अपना पक्ष ज्यों ही आजाद होता है, हीरामनों का मर्दवाद कह उठता है, ‘उसे क्या आता था ? (व्यंग्य)-Sudheesh Pachauri

हीरामन की चौथी क़सम -Sudheesh Pachauri, हिंदी साहित्यकार
हीरामन ने हताश होकर चौथी कसम खाई कि अब किसी हीरा बाई की कहानी को ठीक नहीं करेंगे। इतनी मेहनत की और हीरा बाई ने थैंक्यू तक न कहा। हमने उसे बनाया, लेकिन उस थैंकलेस ने एक बार हमारा जिक्र नहीं किया। हम न होते, तो वह आज कहां होती? नाम कमा लिया, तो नजरें फेर लीं! कसम खाते हैं कि आगे से कभी किसी हीरा बाई को कथाकार नहीं बनाएंगे!

रेणु की तीसरी कसम  कहानी में तीसरी कसम खाकर हीरामन स्टेशन से बाहर निकले। घर आए। गाड़ी चलाना छोड़ लेखनी चलाने लगे। कथाकार हुए। साहित्य के ‘कोड ऑफ कंडक्ट’ के अनुकूल सभी देवताओं को पूजा चढ़ाई। संपादक साधे। आचार्यों को प्रसन्न किया। इनाम झटके। चर्चा होने लगी। नाम चलने लगा। इनाम टपकते रहे। अकादमी पर टकटकी लगी।

हीरामन भोले थे। गंवई थे। उपकारी थे। रचनाकार थे। चेलों से ज्यादा चेलियां पसंद थीं। चेली देखते ही कहते कि तुम में प्रतिभा है, लेकिन सही मार्गदर्शन जरूरी है। हमें गुरु मानो। हम बतावेंगे कि किस तरह लिखा जाता है। एक दिन हम तुम्हें लेखिका बना देंगे। साहित्य की बयार स्त्रियों की ओर बहती थी। चेलियां चंट थीं। वे हिसाब लगातीं कि हीरा गुरु साहित्य में जिस तिस से जुड़ा है। दिल्ली वाले बड़े-बड़े नाम उसकी मानते हैं। वह अलेखिकाओं को लेखिका बना सकता है, मैं तो लेखिका हूं।
हर शहर में संभावनावान लेखिकाएं होती हैं। हर शहर में एक-दो हीरामन हुआ करते हैं। सबको साहित्य की गाड़ी चलाने वाला एक ठो गाड़ीवान चाहिए। बिना एक हीरामन के साहित्य की गाड़ी आगे नहीं बढ़ती। हीरामनों की डिमांड बनी रहती है। हीरामन सब टोटके जानते थे। बिना खर्चा के साहित्य में चर्चा नहीं होती। आसामी देखते, तो कैश की डिमांड बढ़ा देते और आसामिन हुई, तो यों ही कृपालु हो उठते। हिंदी में लेखिकाओं के घोर अकाल को देख वह लेखिका बनाने का अपना ऐतिहासक कर्तव्य निभाने चले थे।
उन्होंने ‘नई कहानी’ का ‘द विंसी कोड’ पढ़ रखा था, जो कहता था कि हर लेखक के पीछे एक पत्नी के अलावा एक लेखिका (प्रेमिका) जरूरी होती है। ऐसी ही किसी शुभ घड़ी में उनके पास एक संभावनाशील लेखिका आई। आप हमारी कथा देख लें, यह विनती की। साहित्य की अनजान नगरी में हम नई हैं। आप सर्वज्ञ हैं। हमारी कथा ठीक न लगे, तो ठीक कर दें। हीरामन ने बड़ी मेहनत से कथा करेक्ट की। इतनी  तो कभी अपनी करेक्ट न कर सके। लेखिका को प्रकाशक मिल गए। कथा प्रकाशित हो गई और देखते-देखते लेखिका का नाम फैल गया। हर पत्रिका में रिव्यू हो गया। हीरामन की कल्पना से भी स्वतंत्र शक्तियां साहित्य में सक्रिय हो उठीं। सब गुण ग्राहक थे। इनाम-इकराम की बातें फैलने लगीं। लेखिका आजाद हो गई। पंख फैलाने लगी।
हीरामन निराशा में डूब गए। बदले की कार्रवाई में उनका मर्द जाग गया। फिल्मी हीरो की तरह कहने लगे: इतना घमंड? हम बना सकते हैं, तो मिटा भी सकते हैं। कसम खाते हैं कि अब कभी किसी हीरा बाई को लेखिका नहीं बनाएंगे! हिंदी में स्त्रियों का अपना पक्ष ज्यों ही आजाद होता है,  हीरामनों का मर्दवाद कह उठता है, ‘उसे क्या आता था? मैंने बनाया है उसे लेखिका!’ ऐसे स्त्री-विरोधी वातावरण में अगर कोई लेखिका दुर्दमनीय हो साहित्य में निकल पड़ती है, तो उसकी जय बोलने का मन करता है..।
साभार दैनिक हिन्दुस्तान दिनांक 3 मार्च 2013

Monday, February 18, 2013

पितृभक्ति में श्रवण कुमार माधवी से छोटा होकर भी अधिक याद क्यों किया जाता है ?


माता पिता की सेवा का जब भी नाम आता है तो हमेशा श्रवण कुमार का नाम लिया जाता है।
क्या इसके पीछे भी पुरूषवादी मानसिकता ही कारण बनती है ?
क्या वैदिक इतिहास में किसी लड़की ने अपने माता पिता की सेवा नहीं की ?
अनगिनत लड़कियां ऐसी हुई हैं जिन्होंने अपने माता पिता की प्रतिष्ठा के लिए अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया।
एक लड़की का सब कुछ क्या होता है ?
उसकी इज़्ज़त, उसकी आबरू !
विवाह हो जाए तो पति के लिए उसके नाज़ुक जज़्बात और बच्चे हो जाएं तो अपने लाडलों की ममता !
माधवी ने अपने पिता ययाति की प्रतिष्ठा बचाने के लिए यह सब कुछ गंवा दिया लेकिन किसी से शिकायत तक न की। उसके त्याग और बलिदान के सामने श्रवण कुमार का शारीरिक श्रम कहीं नहीं ठहरता लेकिन फिर भी माधवी का नाम पितृभक्ति में कभी नहीं लिया जाता।
ऐसा क्यों ?


Tuesday, February 5, 2013

औरत का क़ानूनी जलवा


चपरासी के अलावा ऑफ़िस के सभी लोग जा चुके थे। सीईओ अपने रूम में जुटे हुए थे। हालाँकि उनकी उम्र काफ़ी हो चुकी थी फिर भी बस एक जोश था, जो उन्हें अब भी नौजवानों की तरह जुटे रहने के लिए मजबूर करता था लेकिन जवानी बीत जाए तो सिर्फ़ जोश से ही काम नहीं चलता। सीईओ साहब जल्दी ही निपट गए। 
उनकी सेक्रेटरी को भी जो कुछ ठीक करना था, हमेशा की तरह ठीक कर लिया। सीईओ साहब ने अपनी सेक्रेटरी के चेहरे पर नज़र डाली। वहां कोई शिकायत न थी। वह मुतमईन हो गए और अपना ब्रीफ़ेकेस उठाकर चलने ही वाले थे कि सेक्रेटरी ने आज का न्यूज़ पेपर उनके सामने रख दिया, जिसमें यौन हमले और शोषण का अध्यादेश लागू होने की ख़बर थी।
सेक्रेटरी मुस्कुराते हए बोली -‘आप क्या चुनना पसंद करेंगे, 20 साल की क़ैद या ...?‘
‘क...क...क्या मतलब ?‘- सीईओ साहब हकला भी गए और बौखला भी गए।
सेक्रेटरी ने जवाब देने के बजाय एक एप्लीकेशन उनके सामने रख दी। उसका पति कंपनी का 50 लाख रूपये का स्क्रेप बेचने की अनुमति चाहता था। 
‘यह तुम ठीक नहीं कर रही हो।‘-सीईओ साहब ने हिम्मत करके उसे चेताया।
‘...और आज तक आप जो कुछ करते आए हैं, वह ठीक था ?’-सेक्रेटरी ने तल्ख़ लहजे में ज़रा ऊँची आवाज़ करके कहा।
‘वह सब तुम्हारी रज़ामंदी से होता था।‘-साहब ने उसे याद दिलाया।
‘हाँ, मेरी रज़ामंदी से होता था क्योंकि मैं घुटन से आज़ादी पाना चाहती थी।‘-उसने टेबल पर बैठते हुए उसकी जेब से उसका पेन निकाला और उसके हाथ में थमा दिया।
‘...तो इसके लिए तुमने मेरा इस्तेमाल किया ?‘-सीईओ साहब कुर्सी पर न बैठे होते तो शायद वह चकरा कर गिर जाते।
‘हाँ किया और आपकी रज़ामंदी से ही किया।‘-उसने चेक को उनके बिल्कुल सामने कर दिया।
‘...तो अब क्या चाहती हो ?‘-उन्होंने थके से लहजे में पूछा।
‘बस एक साइन ...‘-उसने ज़रा इठलाकर उनके गाल पर उंगली फिराई।
सीईओ साहब कुछ तय नहीं कर पा रहे थे। तभी लेडीज़ पर्स में रखे मोबाईल पर किसी की कॉल आई। उसने टेबल से उतर अपना मोबाईल चेक किया।
‘जल्दी कीजिए। मेरे पति बाहर खड़े हैं। अगर मैं बाहर न गई तो फिर वह यहाँ अंदर चले आएंगे।‘-सेक्रेटरी ने उसे दबे अल्फ़ाज़ में धमकी दी। 
साहब ने उससे पेन ले लिया और एप्लीकेशन पर मंजूरी लिख कर अपने साईन बनाने लगे। वियाग्रा उनके हाथ को काँपने से नहीं रोक पा रही थी। आज उन्हें औरत अपने से बहुत ज़्यादा मज़बूत नज़र आ रही थी . नया क़ानून उसके साथ था।

Sunday, October 7, 2012

सफलता के लिए प्राथमिकताएं तय कीजिए और एक समय में एक ही लक्ष्य रखिए


 आप हमेशा इस बात के लिए परेशान रहते हैं कि आप कड़ी मेहनत के बाद भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में चूक जाते हैं। इसकी वजह जानना चाहते हैं तो ये आठ नियम अपनाइए और उन पर अमल करने की कोशिश कीजिए।
1.अपने लक्ष्य की सूची बनाइए व लिखिए। 
2. समझने की कोशिश कीजिए कि आप अपने से क्या और कैसे चाहती हैं। 
3. अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए जो कारगर उपाय हैं उनकी भी सूची बनाइए। 
4.कुछ सामान्य नकारात्मक चीजों को अपने से दूर कर दीजिए ताकि आपकी राह आसान हो सके जैसे यह कहना कि डाइट बहुत अधिक सहायक नहीं होती वजन नियंत्रण में। 
5.प्राथमिकताएं तय कीजिए और उन्हें समय सीमा में बांधिए। 
6.अपने से पूछिए कि लक्ष्य पाने के बाद आप अपने को क्या ईनाम देंगी। 
7.अपने दिमाग में एक पिक्चर तैयार कीजिए कि जब आप अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेंगी तो कैसा महसूस करेंगी। 
8.एक समय में एक ही लक्ष्य रखिए, होता यह है कि एकसाथ कई काम लेकर चलने से ही सफलता दूर हो जाती है।  
 यह कहना कि मेरे पास एक्सरसाइज के लिए समय नहीं है। यह एक आम बहाना है। समय को कैसे बचाया जा सकता है इसके लिए सप्ताह भर की डायरी लिखिए। उसमें सारे विवरण होने चाहिए जो भी आपने किया। बिस्तर से पैर नीचे रखने से लेकर रात में सोने तक की सभी बातें। सारे विवरण सामने होने पर ही आप देख पाएंगी कि समय कहां बच सकता है। दोपहर के खाने के बाद एक जगह टिक कर बैठने के स्थान पर टहलते हुए चाय पीने जाइए। यदि आप बच्चों को छोडऩे स्कूल जा रही हैं तो जिम होते हुए आइए। अपने आप से वादा कीजिए कि आप सच में अपने लक्ष्य को पाना चाहती हैं तभी परिणाम बेहतर होंगे।
साभार वागीशा  

भारतीय महिलाओं में दिल का दौरा पडऩे का खतरा ज्यादा होता है Heart Attack


लोगों के बीच एक बड़ा मिथक प्रचलित है कि दिल की बीमारियों के शिकार सिर्फ पुरुष ही होते हैं। पिछले कुछ साल से महिलाओं में दिल की बीमारियों के मामले जिस तेजी से बढ़े हैं, उससे यह मिथक पूरी तरह टूट गया है।
पिछले कुछ अध्ययनों के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में हर साल दिल की बीमारियों से 86 लाख महिलाओं की मौत हो जाती है। यह संख्या महिलाओं की कुल मौत का एक तिहाई हिस्सा है। सिर्फ दिल के दौरे से ही दुनिया भर में 2,67,000 महिलाओं की मौत हो जाती है और यह तादाद स्तन कैंसर से मरने वाली महिलाओं की संख्या से छह गुना ज्यादा है। भारत में महिलाओं में हृदय संबंधी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। देश में महिलाओं की मौत में इन बीमारियों की हिस्सेदारी 17 फीसदी तक पहुंच गई है।
तेजी से बदलती जीवनशैली, पश्चिमी शैली का खान-पान, दफ्तर और घर में बढ़ते तनाव स्तर महिलाएं दिल की बीमारियों का ज्यादा शिकार हो रही हैं।
हाई ब्लडप्रेश, हाई कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज, मेनोपॉज, मेटाबोलिक सिंड्रोम महिलाओं में इस बीमारी को बढ़ावा देते हैं। शारीरिक मेहनत से दूर जीवनशैली, गर्भनिरोधक दवाओं के  इस्तेमाल और एस्ट्रोजन लेवल का कम होना भी महिलाओं में दिल की बीमारियों को न्योता देता है। स्मोकिंग और ड्रिकिंग महिलाओं में दिल की बीमारियों की बड़ी वजह हैं।
जो महिलाएं स्मोकिंग करती हैं, उनमें पुरुषों की तुलना में दिल की दौरा पडऩे की आशंका 19 गुना ज्यादा होती है। हाईब्लडप्रेशर या हाइपरटेंशन की शिकार महिलाओं को पुरुषों की तुलना में दिल का मरीज होने की आशंका 3.5 गुना ज्यादा होती है। जो महिलाएं गर्भनिरोधक गोलियां लेती हैं उनमें यह खतरा ज्यादा होती है। खास कर उन महिलाओं में जिनका वजन ज्यादा होता है।
दिल की बीमरियों के लक्षण पुरुषों और महिलाओं में एक जैसे नहीं होते। जैसा कि पुरुषों में होता है, महिलाओं में दिल का दौरा पडऩे से पहले छाती में बहुत ज्यादा दर्द नहीं होता और न ही उनके बाएं हाथ में यह शिकायत होती है। महिलाओं में थकावट और कमजोरी, सांस लेने में तकलीफ, उल्टी या चक्कर आना, चिंता, सिर घूमने और नींद में गड़बड़ी जैसी शिकायतें दिल के दौरे का पूर्व संकेत हो सकती हैं।
अपच, दर्द, जबड़े, गर्दन, बांह या कान तक पहुंचने वाली जकडऩ इसके लक्षण हो सकती है। लगातार रहने वाला सिरदर्द भी एक लक्षण हो सकता है।
30 से 40 साल की महिलाओं में अचानक  दिल का दौरा पडऩे का खतरा ज्यादा होता है क्योंकि इस उम्र में महिलाएं में गर्भ निरोधक गोलियों के सेवन करती हैं। मोटापा, हाई कोलेस्ट्रॉ़ल और मीनोपॉज का एक साथ होना मारक होता है। चूंकि महिलाएं मासिक धर्म, गर्भधारण और प्रसूति से जुड़े दर्द को सहने की आदत विकसित कर लेती हैं। इसलिए वह शरीर में होने वाले दर्द को हल्के में लेने लगती हैं। यह स्थिति खतरनाक है। कई मामलों में यह दिल के दौरे का संकेत देते हैं। 65 साल से ज्यादा उम्र वाली महिलाओं में दिल का दौरा पडऩे का खतरा ज्यादा होता है और हो सकता है कि उनमें इसके लक्षण भी न दिखाई देते हों। जिन महिलाओं में मीनोपॉज हो चुका होता है उन्हें भी हृदय संबंधी बीमारियां होने का खतरा सामान्य महिलाओं से दो या तीन गुना ज्यादा होता है।
शुरुआती दौर में दिल की बीमारियां दवाओं से ठीक हो जाती हैं लेकिन एडवांस स्टेज में सर्जरी की मदद लेनी पड़ती है। बीमारी के एडवांस स्टेज से ग्रसित महिलाओं के दिल की बाइपास सर्जरी या एंजियोप्लास्टी करनी पड़ती है। उन्हें आर्टिफिशियल हार्ट वाल्व या पेसमेकर लगाना पड़ सकता है। भारतीय महिलाओं की हृदय धमनियां पुरुषों की तुलना में संकरी होती है। इसलिए महिलाओं में दिल का दौरा पडऩे का खतरा ज्यादा होता है।
बहरहाल, कुछ सरल उपायों से हृदय संबंधी बीमारियों की रोकथाम में मदद मिल सकती है। अगर महिलाएं स्मोकिंग करती हैं तो इसे तुरंत बंद कर देना चाहिए। इसमें निकोटिन होता है यह दिल के लिए बहुत नुकसानदेह होती है। खान-पान का ध्यान रखकर दिल की बीमारियों से निजात पाई जा है। तले-भूने खाने में मौजूद ट्रांस फैट एसिड शरीर में बुरे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ा देता और अच्छे कोलेस्ट्रॉल को घटा देता है। इससे दिल पर बुरा असर पड़ता है। नियमित व्यायाम से दिल को स्वस्थ रखा जा सकता है। हर दिन सुबह-शाम आधे घंटे का नियमित व्यायाम हृदय संबंधी बीमारियों को दूर रख सकता है। योग और ध्यान जैसी शारीरिक-मानसिक क्रियाएं इन्हें दूर रखती हैं। भारत में हर साल हृदय धमनी संबंधी बीमरियों से 25 से 30 लाख लोगों की मौत हो जाती है और इनमें महिलाओं की तादाद बढ़ती जा रही है। इसलिए समय रहते इन बीमारियों से बचने और इनके बारे में जागरुकता फैलाने के कदम उठाए जाने चाहिए।
http://www.aparajita.org/read_more.php?id=895&position=1&day=1