नारी तन है
नारी मन है
नारी अनुपम है
सागर से गहरा
उसका मन है
उसका बदन है
बाल घने हैं उसके
बोल भले हैं उसके
मन हारे पहले
पीछे तन हारे है
वफ़ा के पानी में
गूंथकर
मिट्टी प्यार की
सूरत बने जो
औरत उसका नाम है
आराम से
साए में
उसी के तन के
वह एक शजर है
क़ुर्बानी इसी का नाम है
यही औरत का काम है
यह कविता, दरअस्ल एक कविता में उठाए गए सवाल के जवाब में तुरंत ही लिख डाली गई, जिसे आप देख सकते हैं इस शीर्षक पर क्लिक करके
नारी मन है
नारी अनुपम है
सागर से गहरा
उसका मन है
उसका बदन है
बाल घने हैं उसके
बोल भले हैं उसके
मन हारे पहले
पीछे तन हारे है
वफ़ा के पानी में
गूंथकर
मिट्टी प्यार की
सूरत बने जो
औरत उसका नाम है
हां, मैंने पढ़ा है
नारी मन कोआराम से
साए में
उसी के तन के
वह एक शजर है
हमेशा कुछ देता ही है
पत्थर खाकर भीक़ुर्बानी इसी का नाम है
यही औरत का काम है
यह कविता, दरअस्ल एक कविता में उठाए गए सवाल के जवाब में तुरंत ही लिख डाली गई, जिसे आप देख सकते हैं इस शीर्षक पर क्लिक करके