Tuesday, September 4, 2012

आधुनिकता के साये में कामकाजी पति-पत्नी

'दृश्य और अदृश्य जगत' ब्लॉग पर 
गीता झा

आधुनिकता के साये में उबाऊ दाम्पत्य जीवन

दांपत्य या गृहस्थ  -जीवन एक महत्पूर्ण संस्था है जिसमें नर-नारी के निर्मल सामीप्य का समर्थन होता है. कुछ एक अपवाद , विवशता या अति उच्च - स्तरीय आदर्शवादिता के तथ्यों को छोड़ दिया जाये तो दाम्पत्य जीवन सुयोग- संयोग से विकसित एक स्वाभाविक और सरल विकास क्रम - व्यवस्था  है.

उपभोत्ता संस्कृति और आधुनिकता ने न केवल व्यक्ति और समाज को ही प्रभावित किया हैं वरन पारिवारिक संस्था की जडें भी हिला कर रख दी हैं.

आधुनिक जीवन शैली , अत्यधिक महत्वकांक्षा और अपना -अपना करियर बनाने का लोभ अपनाते दम्पति , आपस में ज्यादा रूचि नहीं रखते हैं और मजबूरीवश उनका सम्बन्ध केवल एक छत्त के नीचे रहना मात्र ही होता है.

पति-पत्नी-एकल परिवार

पहले संयुक्त परिवार में सास- ससुर , चाचा -चाची, जेठ-जेठानी, ननद- नंदोई इत्यादि का दाम्पत्य -जीवन में काफी दखल रहता था.  पति-पत्नी के अहम टकराने के फलस्वरूप दाम्पत्य जीवन के बिखरने से पहले ही वे दखल दे देते थे और पति-पत्नी का निजी कलेश-कलह आगे नहीं बढ पाता था. अब संयुक्त परिवार विघटित होने लगे  हैं, दखल देने वाला कोई रह नहीं गया है .दूर के नाते-रिश्तेदार भी आत्मीयता के आभाव में प्रभावशाली दखल नहीं दे पाते है, इससे पति- पत्नी के अपने- अपने अहम और  स्वार्थ  की जबरदस्त भिडंत होती है और गृहस्थी  में दरार, टूटन और विघटन  के दर्शन होते हैं.



करियर सवांरने  के लोभ में मध्यम एकांकी -परिवार के पति-पत्नि अपने बच्चों को  नौकरों के हवाले , केयर-सेंटर, बालवाडी या प्री - नर्सरी  में छोड़ कर निश्चिंत हो जाते हैं. केवल नामी स्कूल में नाम लिखा कर, मोटी-मोटी फीस भर कर और अनेकों tuition और coaching  करा कर वे आपने अभिभावक होने के फ़र्ज़ की इतिश्री समझ लेते हैं. इन बच्चों को  पारिवारिक प्रेम-पोषण-सरंक्षण से वंचित रहने के कारण कई मनोविज्ञानिक और व्यक्तिगत समस्याओं  का सामना करना पड़ता है.

पति-पत्नी-करियर

अक्सर  कामकाज करने वाले पति या पत्नि में जो पहले घर आ जाता है, उसे दूसरे  के बाद में आने की कोई उमंग और अधीरता नहीं होती हैं. आधुनिकता की  दुहाई देने वाले पति भी  अकसर पुरातन -पंथी मानसिकता से ग्रसित पाए गए हैं  . पतियों  के अनुसार घर-गृहस्ती चलाना  स्त्रियों का ही कार्य हैं , क्योकि वे उसे संरक्षण  देतें हैं, काम  करने की आज़ादी देतें हैं, समाज  में सर उठा  कर चलने  का गर्व और अधिकार देते हैं , वर्ना अविवाहित महिलाएं या जिनके पति  नहीं होते हैं , उन्हें समाज़ जीने ही कहाँ देता हैं ?



ऐसे पतियों की दिली ख्वाइश होती हैं की अगर पत्नियाँ  उनसे पहले घर आ जाती हैं तो , मुस्करा कर उनका स्वागत करे, उनके कपडे निकाल कर दे, चाय-पानी-नास्ता हाजिर रखे और घर, आपने ऑफिस या बाल-बच्चों की शिकायतों का पोटला न लेकर बैठ जाये.
यहाँ पत्नियों का कहना हैं की वे भी तो घर थक कर आती हैं, उनका भी विश्राम करने का मूड होता हैं,  वैसे अगर पति पहले घर पर आ जाये तो कौन सा   मुस्करा के दरवाजे पर उनका स्वागत करता हैं या चाय-पानी पेश करता हैं ?
करियर  की बुलंदी को छूने की चाहत में अक्सर दम्पतियों में एक दूसरे को धोखा देने और अपने सहकर्मियों  से सम्बन्ध बनाने की प्रवृति धड़ल्ले से विकसित हुई हैं. वैवाहिक संबंधों से छुटकारा पाने की साध पाले हुए लोग अपनी करियर की सफलता के लिए अपने सहकर्मी या जिनसे करियर में उन्नति के अवसर मिलते हैं उनसे अन्तरंग सम्बन्ध बनाने से नहीं हिचकिचाते. यानि करियर के लिए दाम्पत्य-जीवन को दाव पर लगाने वालों की भी कमी नहीं है.

पति-पत्नी-सेक्स

कामकाजी दम्पति अक्सर शीघ्र ही सेक्स से विरक्त हो जाते हैं. बच्चों के जन्म के बाद या अधिकतर दिनभर की भाग दौड़ , विभिन्न प्रकार के तनाव, वातावरण के प्रदुषण और शारीरिक थकान के कारण पति-पत्नी एक दूसरे के लिए क्रमशः साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक पत्रिका बनते जाते हैं.



अपने-अपने अहम , स्वार्थ और आकाँक्षाओं में तालमेल न बैठा पाने के कारन यौन -संबंधों में शिथिलता आती जाती हैं. केवल यौन -सुख पर आधारित दाम्पत्य - जीवन मानसिक और भावनात्मक जुड़ाव की कमी के कारण बोझिल और उबाऊ हो जाते हैं.

पति-पत्नी- विवाहत्तेर संबंध
आमतौर पर माना जाता हैं की यौन-सुख की तलाश में पति-पत्नी विवाहत्तेर सम्बन्ध बनातें हैं. लेकिन हकीकत यह हैं की अक्सर एक दूसरे से बेज़ार हुए  पति -पत्नी जब एक दूसरे की रिपोर्ट-कार्ड में परफोर्मेंस  - वइस,  पासिंग - मार्क्स भी नहीं देते हैं , तभी  वे व्यर्थ में अपने को ------तीसमारखां सिद्ध ----करने के चक्कर में  यहाँ-वहाँ मारे-मारे फिरते हैं.



अपने-अपने करियर को प्रमुखता देते हुए , साथ - साथ काम करने के कारण, लगाव, निर्भरता, अनुराग, और हँसी मजाक़ के कारण अक्सर दम्पति बाहर भावनात्मक सम्बन्ध बना लेते हैं जिसका उदेश्य सेक्स न होकर केवल अपने उबाऊ और कतराने वाले दाम्पत्य-जीवन से कुछ समय के लिए छुटकारा पाना होता है.


पति-पत्नी-सीक्रेट

आजकल दम्पति  पूरे जोर शोर से जतन- पूर्वक अपनी निजता को गोपनीय बना कर रखते हैं  और दूसरी ओर अपने पार्टनर की पूरी -पूरी जासूसी भी करते हैं. एक दूसरे के मोबाइल की कॉल  - डिटेल खंगालना, फ़ेस -बूक की अप - डेट - स्टेटस चेक करना ओर एक दूसरे के देनिक कार्यक्रमों ओर मूड -स्विंग पर पैनी दृष्टी रखना.  यानि दोहरे मापदंड के सभी फोर्मुले अपनाना.

वैवाहिक सम्बन्ध कामचलाऊ तरीके से चलता रहे इसलिए दंपत्ति अक्सर अपने ऑफिस या व्यवसाय की अधिकतर बातें या जानकारी एक दूसरे को नहीं बतातें हैं. उनके अनुसार अगर जरुरत से अधिक बताया गया तो दूसरे पक्ष की दखलंदाज़ी बढ सकती हैं, अपेक्षाएं ओर मांगें बढ सकती हैं और शक की सुई उनके चरित्र की और घूम सकती हैं. इसलिए सब कुछ बताना जरुरी नहीं होता है.

पति-पत्नी- अन्तरंग समय

ऑफिस से घर लौट कर सोते समय तक, छुट्टी के दिन, या एकांत के पलों में अधिकतर दम्पति एक दूसरे के साथ से बचने के लिए अपने लेप- टॉप या मोबाइल का इस्तमाल करना या टी. वी . के प्रोग्राम्स देखना अधिक पसंद करतें हैं.

अक्सर पत्नी के मायके जाने पर या पति के लम्बे टूर पर जाने पर दम्पति , स्वतंत्रता की सुखमय अनुभूति को बांटने के लिए  अपने - अपने कार्यस्थल पर जुलाब जामुन और समोसों  की  पार्टी देते  हैं.

पति-पत्नी- कुछ हमारे हड़प्पा युगीन विचार




लेकिन हकीकत यही है   की पति-पत्नी सर्वश्रेष्ठ   मित्र है , पति - पत्नी  आदर्श जीवनसाथी हैं और पति-पत्नी बेजोड़ प्रेमी भी हैं. जरुरत हैं थोडा संयम, त्याग, सेवा और प्रेम भावना की . नितांत वैक्तित्व  आपेक्षाओं और आवश्कताओं को सामंजस्य  , समर्पण और निष्ठा में बदलने की . शरीर , मन और भावना के तल पर  मिलाने से ही दम्पति  true soul -mate बन पाते हैं.

Dum dara dum dara मस्त  मस्त
Dara dum dara dum dara मस्त  मस्त
Dara dum dara  dum dum       
ओ  हमदम  बिन  तेरे  क्या  जीना 
ओ  हमदम  बिन  तेरे  क्या  जीना 

2 comments:

  1. ये तो अपने हाथ में है स्वर्ग को नर्क बनालो या नर्क को स्वर्ग
    भुगतना भी खुद ही पड़ता है अब कोई खुद कुल्हाड़ी में पैर मारले तो
    उसके लिये कोई क्या कर सकता है?

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  2. हर प्राप्ति की एक क़ीमत चुकानी पड़ती है। दूसरे,जब मनोरंजन के साधन घर में कम हों,तो सेक्स ही मनोरंजन बन जाता है। पुराने जमाने में अधिक संतान की यह एक प्रमुख वजह थी। अब मनोरंजन के जो साधन तो पचास तरह के हैं,मगर उनमें न कहीं मन है,न कोई रंजन। लिहाजा,दुनिया भर में दाम्पत्य संबंध प्रभावित हुए हैं। जड़ों की ओर लौटने की बात कहें तो आधुनिकतावादियां काटने को दौडेंगीं। वैसे,सेक्स के प्रति अरूचि आध्यात्मिक मार्ग को सुलभ करती है,बशर्ते वह सहज हो।

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