Wednesday, May 25, 2011

औरत की हक़ीक़त Part 3 (प्रेम और वासना की रहस्यमय पर्तों का एक मनोवैज्ञानिक विवेचन) - Dr. Anwer Jamal

औरत की हक़ीक़त  पार्ट 1 का लिंक 
औरत की हक़ीक़त  पार्ट 2 का लिंक 
(...और अब आगे )
‘कुछ नहीं, मैं बस पानी लूंगा।‘-धनवीर ने उसे देखते हुए कहा।
‘जी, अभी लाई।‘-तारा ने कहा और वह बाहर से पानी ले आई। धनवीर ने पानी का गिलास ट्रे से उठाया और घूंट-घूंट करके पीने लगे। इस दरम्यान वह तारा के चेहरे को बड़े ग़ौर से देखते रहे।तारा को उनकी नज़र में कोई प्यास  बिल्कुल भी नज़र न आई। उसे ऐसा लगा जैसे कि वह उसके चेहरे में कुछ तलाश रहे हैं  या फिर उसकी आंखों के ज़रिये उसके दिलो-दिमाग़ में झांकने की कोशिश कर रहे हैं। तारा साल भर से इस धंधे में थी, तब से बहुत लोग आए और गए लेकिन धनवीर जैसा उसके पास कोई भी न आया था। वे सब जल्दबाज़ होते थे और अपने वक्त और अपने रूपये को पहले लम्हे से ही वसूल करना शुरू कर देते थे लेकिन उसने पाया कि धनवीर ऐसी कोई जल्दबाज़ी नहीं दिखा रहे थे।
‘शायद ग्राहक कुछ हिचकिचा रहा है।‘-यह सोचकर तारा ने तकिए के नीचे से एक पैकेट निकालकर उनकी तरफ़ बढ़ाया। ये पैकेट सरकारी कारिन्दे एड्स से हिफ़ाज़त की ख़ातिर कोठों पर मुफ़्त देकर जाते थे।
‘इसे रहने दो।‘-धनवीर थोड़ी नागवारी के साथ बोले तो उनके चौड़े माथे पर कुछ लकीरें उभर आईं।
‘तो फिर चार्ज डबल लगेगा साहब। बाद में टेंशन नहीं चाहिए। काम आपकी मर्ज़ी का तो दाम हमारी मर्ज़ी का।‘-तारा बड़ी अदा के साथ मुस्कुराई और धंधे का उसूल बताकर  उनके चेहरे के भाव पढ़ने लगी। धनवीर जी उसकी बात को अनसुना करके बदस्तूर पानी के घूंट भरते रहे और हँसते हुए उसके गालों में पड़ने वाले गड्ढों को देखते रहे। इन गड्ढों को वह पहचानते थे।  

(...जारी, डा. अनवर जमाल की क़लम से; एक ऐसा अफ़साना जो दिल को छूता है, दिमाग़ को झिंझोड़ता है और फिर सीधे रूह में उतर जाता है, नेट पर पहली बार)

6 comments:

  1. इंतजार रहेगा अगली किस्त का

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  2. @ मयंक जी और अरूणेश जी ! जल्दी ही आपको अगली क़िस्त पढ़वाई जाएगी । तब तक आप पिछली क़िस्तें भी पढ़ लीजिए ।
    शुक्रिया !

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  3. तीनों क़िस्त पढ़ गया. कहानी अच्छी लग रही है लेकिन अधूरी होने के कारण कुछ अतृप्ति का अहसास जगा गयी. जबतक आगे की कडियां नहीं आतीं और कहानी पूरी नहीं होती प्यास बनी रहेगी.

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  4. कहानी अच्छी लगी लेकिन अगली किस्त का इन्तिज़ार है

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  5. अच्छा बिम्ब खडा करती है यह रचना एक महल माहौल का भी बुनती है .

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